बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 इतिहास बीए सेमेस्टर-3 इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 इतिहास
प्रश्न- वॉरेन हेस्टिंग्ज के अधीन विदेशी सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर -
वॉरेन हेस्टिंग्ज के अधीन विदेश सम्बन्ध
(External Relations Under Warren Hastings)
(1) रूहेला युद्ध 1774 - रूहेला सरदार तथा अवध के नवाब दोनों को मराठों के आक्रमण का डर था। 1772 के शुरूआती दौर में मराठों ने जब्ता खाँ को हराकर उसके संपूर्ण क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया। रूहेला सरदार हाफिज रहमत खां को मराठा आक्रमण का भय था और उसने अवध के नवाब से एक सन्धि कर ली जिसके अनुसार उसने मराठों के विरुद्ध रक्षार्थ नवाब की सहायता मांगी तथा उसके लिए 40 लाख रुपया देना स्वीकार किया। 1773 के बसन्त में मराठों ने रूहेलखंड पर आक्रमण किया। परन्तु जब कंपनी तथा अवध की सेनाएं सन्मुख देखीं तो लौट गये। मराठों का भय टल गया। नवाब ने 40 लाख रुपया मांगा लेकिन रूहेला सरदार ने टालमटोल की।
फरवरी 1774 में नवाब ने रूहेलखंड पर आक्रमण कर उसे अपने प्रदेश में विलय करने की सोची। उसे रूहेला-मराठा संघ का भय था लेकिन पेशवा माधव राव की मृत्यु के कारण मराठों में फूट पड़ गई तथा यह भय टल गया। नवाब के लिए यह एक अच्छा मौका था। दूसरे, उसने सम्राट और जब्ता खां से भी मित्रता कर ली थी और फिर बनारस की सन्धि पर आधारित उसने कंपनी से सैनिक सहायता मांगी। कंपनी की सेना की सहायता से रूहेलखंड पर आक्रमण हुआ और अप्रैल 1774 में मीरापुर कटरा के स्थान पर एक निर्णायक युद्ध हुआ और जिसमें हाफिज रहमत खां मारा गया। रूहेलखंड अवध में सम्मिलित कर लिया गया तथा 20,000 रूहेल देश से निकाल दिये गये।
वॉरेन हेस्टिंग्ज के इस व्यवहार की कड़ी आलोचना की गई है। रूहेलो ने कंपनी का कुछ भी नुकसान नहीं किया था। उनके खिलाफ कंपनी की सेना का प्रयोग अन्यायपूर्ण था। बर्फ के अनुसार एक स्वतंत्र लोगों को नवाब के अधीन करने में कोई तर्क नहीं था। मैकाले ने भी इस कड़े व्यवहार की आलोचना की है कि कंपनी के सैनिकों के रहते हुए रूहेला के गांवों में लूटपाट हुई, बच्चों को मार डाला गया और स्त्रियों की इज्जत लूट ली गई। इसी तरह अन्य लोगों ने भी इस संपूर्ण घटना की निन्दा की है। अनेक रुहेलों को देश निकाला दे दिया गया तथा हाफिज रहमत खां के परिवार से दुर्व्यवहार किया गया। दूसरी ओर वॉरेन हेस्टिंग्ज के पक्षपाती सर जॉन स्ट्रेची के अनुसार, "बनारस की सन्धि करते समय हेस्टिंग्ज का विचार था कि रूहेलों के विरुद्ध नवाब की सहायता करने का अवसर नहीं आयेगा। इसी प्रकार यह भी कहा जाता है कि हाफिज रहमत खां तथा नवाब के बीच सन्धि करते समय जनरल सर राबर्ट बारकर उपस्थित थे तथा उनकी उपस्थिति से कंपनी सन्धि हेतु उत्तरदायी बन गई।
(2) द्वितीय ऐंग्लो-मैसूर युद्ध 1780-84 - अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के परिणामस्वरूप फ्रांस तथा इंग्लैंड में युद्ध छिड़ गया। वॉरेन हेस्टिंग्ज ने भारत की समस्त फ्रांसीसी बस्तियों को अपने कब्जे में करने का निश्चय किया। इसने माही बन्दरगाह, जो मालावार तट पर स्थित था, पर विजय प्राप्त कर ली जिसे हैदर अली प्रयोग कर रहा था।
वॉरेन हेस्टिंग्ज ने यह तर्क दिया कि माही बन्दरगाह के द्वारा हैदरअली को फ्रांसीसी मदद पहुंच सकती है। इसके अलावा अंग्रेजों ने बिना किसी अनुमति के अपनी सेना हैदर अली के क्षेत्र से उत्तरी सरकार में स्थित सुन्दूर की विजय के लिए भेज दी थी।
हैदर अली ने मराठों तथा निजाम के साथ एक समझौता कर लिया था। फ्रांसीसी सहायता का वचन ले लिया व फिर जुलाई 1780 में कर्नाटक पर आक्रमण करके अरकाट पर विजय प्राप्त की। इसके तुरन्त बाद सर हेक्टर मनरो की सेना को भी हरा दिया। इस प्रकार कंपनी को मराठों तथा मैसूर दोनों से मात खानी पड़ी। जैसाकि सर 'अल्फैड लायड के अनुसार, कि 1780 के ग्रीष्मकाल में कंपनी की साख अपने न्यूनतम स्तर पर थी। परन्तु वॉरेन हेस्टिंग्ज ने स्थिति को संभाल लिया। सर आयर कूट के अधीन कलकत्ता भेजी गई सेना ने हैदर अली को पोर्टोनोवा पोलिलूर व सोलिंगपुर के स्थानों पर हरा दिया, जबकि जनरल वुस्सी ने 3000 सैनिक हैदर अली के सहायता हेतु भेजे थे। इधर सिंधिया से अंग्रेजों ने समझौता कर लिया, जिससे मराठे तथा हैदर अली अलग-अलग हो गये। हैदर अली की सहायता के लिए फ्रांस से भेजे गये एडमिरल सफरिन ने भी काफी प्रयास किये लेकिन हयूज के अधीन अंग्रेजी बेड़े ने एक न चलने दी तथा सहायता के सभी प्रायस विफल कर दिये। अंग्रेजों के अहोभाग्य से दिसंबर 1782 में हैदरअली की मृत्यु हो गई लेकिन उसके पुत्र टीपू ने युद्ध जारी रखा। जुलाई 1783 में पेरिस की सन्धि में अमरीका युद्ध समाप्त हो गया और एडमिरल साफरिन यूरोप लौट गया। मद्रास के गवर्नर लार्ड मैकार्टनी ने सन्धि करने की सोची और अन्त में मार्च 1784 में मंगलोर की सन्धि पर हस्ताक्षर हो गये। इससे युद्ध बन्दी हो गई तथा विजित प्रदेश लौटा दिये गये।
(3) प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध 1775-82 - वॉरेन हेस्टिंग्ज ने अवध के साथ सहायक सन्धि करके विशेष ख्याति प्राप्त कर ली थी। बंबई परिषद के प्रधान तथा सदस्य शक्तिशाली मराठों की उपस्थिति में कुछ नहीं कर पा रहे थे।
पेशवा माधव राव की मृत्यु (1772) और पेशवा नारायण राव की हत्या (1793) के बाद महाराष्ट्र में आन्तरिक झगड़े शुरू हो गये। नारायण राव के चाचा रघुनाथ राव के मरणोपरान्त जन्मे पुत्र माधवराव नारायण के अधिकार को चुनौती दी लेकिन राज प्रबन्धकर्ता मंडल के प्रधान नाना फड़नवीस के सामने अपने आप को प्रभावहीन पाकर उसने कंपनी की सहायता मांगी तथा बंबई सरकार से सूरत की सन्धि की। सूरत की सन्धि के अनुसार कंपनी ने रघुनाथ राव को पेशवा बनाया तथा उसके बदले कंपनी को सालसेट व बसीन नगर मिलने थे। कंपनी की सेना की सहायता से रघुनाथ राव पूना की ओर बढ़ा और मई 1775 में अर्रास के स्थान पर एक अनिर्णायक युद्ध लड़ा।
कलकत्ता परिषद ने इस सन्धि को अस्वीकार कर दिया। इस युद्ध को अन्यायपूर्ण घोषित कर दिया। उन्होंने कलकत्ता से कर्लन अपटन को पूना भेजा जिसने मार्च 1776 में पुरन्दर की सन्धि की। लन्डन स्थित डायरेक्टरों ने सूरत की सन्धि को स्वीकृति दे दी तथा पुर-डर की सन्धि को अस्वीकार कर दिया। 1775 में अमेरीका के स्वतंत्रता युद्ध होने के कारण अंग्रेज तथा फ्रांसीसी पुनः एक-दूसरे के विरोधी हो गये। बंबई परिषद ने लन्दन से प्रोत्साहित होकर सूरत की सन्धि को पुनर्जीवित कर दिया।
बंबई की सेना बड़गांव के स्थान पर पेशवा की सेना से पराजित हो गई तथा जनवरी 1779 में बड़गांव की सन्धि की। जिसके अनुसार अंग्रेजों ने 1773 में सभी जीते हुए प्रदेश लौटाने का वचन दिया। यह सन्धि अंग्रेजों के लिए बहुत अपमानजनक थी। वॉरेन हेस्टिंग्ज ने युद्ध जारी रखा तथा दो सैनिक दल भेजे। एक दल कैप्टन पोफम के अधीन ग्वालियर पर आक्रमण करने के लिए तथा दूसरा जनरल गाडर्ड के अधीन पूना के विरुद्ध। जनरल गाडर्ड ने मध्य भारत से गुजरते हुए फरवरी 1780 में अहमदाबाद पर अधिकार कर लिया। उसने गुजरात को भी रौंद डाला तथा बड़ौदा के गायकवाड़ को जो अब तक तटस्थ थे, अपनी ओर मिला लिया। परन्तु उसका पूना पर आक्रमण विफल रहा जिससे उसको वापस लौटना 'पड़ा। उधर पोफस ने ग्वालियर की सेना को कई छोटी-छोटी झड़पों में हराया तथा अगस्त 1780 में ग्वालियर दुर्ग जीत लिया।
(4) सम्राट शाह आलम द्वितीय से सम्बन्ध - वॉरेन हेस्टिंग्ज के समय में मराठों का बोलबाला था क्योंकि उन्होंने अपने योग्य तथा अनुभवी नेता महदाजी सिंधिया तथा जसवन्त राव होल्कर के नेतृत्व में अपनी स्थिति को पुनः सुदृढ़ कर लिया था। राजस्थान, आगरा के आसपास के जाटों तथा दोआब के रूहेलों को पराजित कर फरवरी 1771 में उन्होंने दिल्ली जीत ली। तत्पश्चात् उन्होंने शाह आलम को मुगल सिंहासन पर बैठा दिया।
(5) अवध से सम्बन्ध - क्लाइव ने अवध को मध्यवर्ती राज्य के रूप में स्थापित किया था। प्रतिवर्ष नवाब बिना धन दिये कंपनी से सैनिक सहायता लेता था। जिससे कंपनी को वित्तीय बोझ का घाटा उठाना पड़ता था अतः कंपनी और अवध के बीच संबंध सन्तोषजनक नहीं रहे थे।
वॉरेन हेस्टिंग्ज ने अनुभव किया कि यदि इन दोनों के बीच संबंध स्थापित नहीं किया गया तो संभवतः अवध मराठों के अधीन आ जायेगा। हेस्टिंग्ज स्वयं बनारस गया और 1793 में नवाब से बनारस की सन्धि की। इससे इलाहाबाद तथा कारा के जिले नवाब को 50 लाख रुपये में बेच दिये गये। इसके अतिरिक्त नवाब ने आवश्यकता पड़ने पर एक ब्रिगेड के लिए 30,000 रुपये मासिक के स्थान पर 2,10,000 रुपये मासिक देना स्वीकार किया।
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- प्रश्न- फ्रांसीसियों के भारत आगमन एवं भारत में फ्रांसीसी शक्ति के विस्तार को समझाइए।
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- प्रश्न- यूरोपीय फ्रांसीसी कंपनी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पुर्तगालियों की सफलता के कारण बताइये।
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- प्रश्न- 1399 ईस्वी से अठारहवीं सदी के मध्य मैसूर राज्य की स्थिति से अवगत कराइये।
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